Tuesday, September 15, 2020

SHIVA Tandava strota. sanskrit lyrics, शिव तांडव स्तोत्रं

 शिव तांडव स्तोत्रं 

जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले गलेऽव लम्ब्य लम्बितां भुजंग तुंग मालिकाम्  डमड्डमड्डमड्डम न्निनादव ड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटा कटा हसं भ्रमभ्रमन्नि लिम्प निर्झरी विलोलवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि . धगद्धगद्धग ज्ज्वल ल्ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर स्फुर द्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे . कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचि द्दिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि ॥३॥

जटा भुजंग पिंगल स्फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुंकुम द्रव प्रलिप्त दिग्व धूमुखे  मदान्ध सिन्धुर स्फुरत्त्व गुत्तरी यमे दुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर प्रसून धूलि धोरणी विधू सरांघ्रि पीठभूः  भुजंगराज मालया निबद्ध जाट जूटक: श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ॥५॥

ललाट चत्वर ज्वलद्धनंजय स्फुलिंगभा  निपीत पंच सायकं नमन्नि लिम्प नायकम्  सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं महाकपालि सम्पदे शिरो जटाल मस्तुनः ॥६॥

कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धग ज्ज्वल द्धनंज याहुतीकृत प्रचण्डपंच सायके  धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्रचित्र पत्रक  प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत् कुहू निशी थिनी तमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः  निलिम्प निर्झरी धरस्त नोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंच कालिमप्रभा वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् . स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंत कच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्व मंगला कला कदंब मंजरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् . स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्व दभ्र विभ्रम भ्रमद्भुजंग मश्वस  द्विनिर्गमत्क्रम स्फुरत्कराल भाल हव्यवाट् धिमिद्धि मिद्धि मिध्व नन्मृदंग तुंग मंगल ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृष द्विचित्र तल्पयोर्भुजंग मौक्तिक स्रजोर्  गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद्वि पक्ष पक्षयोः . तृष्णार विन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे॥१२॥

कदा निलिम्प निर्झरी निकुंज कोटरे वसन् विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मंजलिं वहन् . विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाललग्नकः शिवेति मंत्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः। तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना। विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमम ही नित्यमेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि मेति संततम् . हरे गुरौ सुभक्तिमा शुयातिना न्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे . तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरंग युक्तां लक्ष्मीं सदैवसुमुखिं प्रददाति शंभुः ॥१७॥

No comments:

Post a Comment

॥ शिवाष्टकम् ॥

  ॥ शिवाष्टकम् ॥ तस्मै नमः परमकारणकारणाय दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलितपिङ्गललोचनाय। नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नमः शिवाय॥१॥ ...